ਕਿਤਾਬ – ਮੰਗਤ ਰਾਮ ਪਾਸਲਾ ਦੇ ਅੰਧ ਭਗਤਾਂ ਅਤੇ ਮਚਲੇ ਭਗਤਾਂ ਦੇ  ਧਿਆਨ ਹਿੱਤ!
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ਕਿਤਾਬ – ਮੰਗਤ ਰਾਮ ਪਾਸਲਾ ਦੇ ਅੰਧ ਭਗਤਾਂ ਅਤੇ ਮਚਲੇ ਭਗਤਾਂ ਦੇ ਧਿਆਨ ਹਿੱਤ!

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CPI(M) All India Leaflet नफरत को हराओ – आतंकवाद का मुकाबला करो 22 अप्रैल 2025 को कश्मीर के पहलगाम के पास आतंकवादियों द्वारा किया गया जघन्य हमला 26 निर्दोष लोगों की जान ले गया – जिनमें 25 भारतीय नागरिक और एक नेपाली नागरिक शामिल थे। मारे गए भारतीय नागरिकों में देश के विभिन्न राज्यों से आए 24 पर्यटक और एक साहसी युवा कश्मीरी घोड़े वाला शामिल था। आतंकवादियों ने शिकार बनाए गए हर व्यक्ति का धर्म जानने के बाद ही उनकी हत्या की। इस भीषण नरसंहार की निंदा जम्मू-कश्मीर के सभी तबकों, पूरे भारत और दुनिया भर में हर ओर से की गई। इस हमले ने देश को अनंतनाग (2000), मुंबई (2008), उरी (2016) और पुलवामा (2019) जैसे पहले के चौंकाने वाले आतंकी हमलों की दर्दनाक याद दिला दी। रिपोर्टों के अनुसार इन आतंकी हमलों के पीछे पाकिस्तानी सेना, इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) और लश्कर-ए-तैयबा व जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों का नापाक गठजोड़ है। पहलगाम में हुए इस आतंकी हमले की सबसे तीखी निंदा खुद जम्मू-कश्मीर से हुई। 23 अप्रैल को पूरे प्रदेश के शहरों-कस्बों ने स्वतःस्फूर्त तरीके से पूर्ण बंद का पालन किया। इस हमले में शहीद हुए 29 वर्षीय कश्मीरी घोड़े वाला सैयद आदिल हुसैन शाह के पिता ने कहा, “आदिल ने पर्यटकों की जान बचाने के लिए अपनी जान दे दी। यही है असली कश्मीरियत।” श्रीनगर के एक पर्यटक टैक्सी चालक अशरफ ने कहा, “ये गोलियां पर्यटकों पर नहीं चलाई गईं, ये तो हमारे दिलों पर चली हैं।” कश्मीरी जनता की ओर से ऐसी हज़ारों संवेदनशील प्रतिक्रियाएँ सामने आईं, बावजूद इसके कि 2019 में भाजपा सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया, संविधान से अनुच्छेद 370 और 35A हटा दिए और उसके बाद से वहाँ की जनता पर दमन का सबसे कठोर दौर थोप दिया। लेकिन इसके बदले कश्मीरियों को क्या मिला? केंद्र सरकार ने पहलगाम हमले के शक में हज़ारों कश्मीरी युवाओं पर कार्रवाई की और उन्हें जेलों में डाल दिया। जिन परिवारों के किसी सदस्य पर आतंकवादी होने का शक था, उनके गरीब घरों पर बुलडोज़र चला दिए गए। देश के अन्य हिस्सों में आरएसएस-भाजपा और संघ परिवार द्वारा भड़काई गई नफरत की मुहिम के कारण सैकड़ों कश्मीरी छात्रों को उनके कॉलेजों और होस्टलों से परेशान कर निकाला गया। कश्मीरी व्यापारियों की दुकानों और घरों में लूटपाट की गई। संपूर्ण मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाकर क्रूर हमले किए गए, खासतौर पर भाजपा शासित राज्यों में। उत्तर प्रदेश के आगरा में एक बिरयानी दुकान में काम करने वाले युवा मुस्लिम मज़दूर की तो हत्या तक कर दी गई। पहलगाम नरसंहार के लिए जिम्मेदार एक भी आतंकवादी अब तक पकड़ा नहीं गया है। यही स्थिति पुलवामा हमले की भी है, जिसमें हमारे दर्जनों जवान शहीद हुए थे – छह साल बीत जाने के बावजूद उसके दोषियों तक भी सरकार नहीं पहुँच सकी है। इस वीभत्स घटना से मात्र पंद्रह दिन पहले, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 7-8 अप्रैल को श्रीनगर गए थे और वहाँ संयुक्त एकीकृत मुख्यालय (Unified Headquarters) की बैठक में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की थी। इस बैठक में सेना, सीआरपीएफ, बीएसएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस के शीर्ष अधिकारी मौजूद थे, लेकिन जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को इसमें शामिल ही नहीं किया गया। बैठक के अंत में अमित शाह ने शेखी बघारी कि “मोदी सरकार के सतत और समन्वित प्रयासों के चलते देशविरोधी तत्वों द्वारा पोषित समूचा आतंकवादी नेटवर्क जम्मू-कश्मीर में ध्वस्त कर दिया गया है।” लेकिन इस दावे के महज 15 दिन के भीतर वही आतंकवादी नेटवर्क पहलगाम में देश को दहला गया! यहाँ मोदी सरकार के पूर्व दावों को भी याद करना ज़रूरी है। 2016 में कहा गया था कि नोटबंदी आतंकवाद की फंडिंग रोकने के लिए की गई है! 2019 में दावा हुआ कि अनुच्छेद 370 और 35A को हटाने से आतंकवाद जड़ से खत्म हो जाएगा! 2019 के बाद केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर पर थोपे गए दमनात्मक राजसत्ता को भी आतंकवाद रोकने के नाम पर जायज़ ठहराया गया! उरी और पुलवामा के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट हमले को भी आतंकवाद का खात्मा बताकर पेश किया गया! पहलगाम में हुआ यह वीभत्स आतंकी हमला इन सभी झूठे दावों की पोल खोल गया है। भाजपा सरकार की खुफिया और सुरक्षा विफलता वाकई अभूतपूर्व रही है। लेकिन इसके पीछे एक गहरी वजह भी है। दुनिया में कोई भी देश स्थानीय जनता के सहयोग के बिना आतंकवाद को जड़ से खत्म नहीं कर सका है। जम्मू-कश्मीर में पिछले एक दशक से केंद्र सरकार ने ऐसी ही नीतियाँ अपनाई हैं, जिनका उद्देश्य कश्मीर की आम जनता को अपने ही देश से अलग-थलग कर देना रहा है — जैसा कि ऊपर दिए गए उदाहरणों से साफ है। ऊपर से थोपे गए कठोर सुरक्षा उपाय, जिनमें जम्मू-कश्मीर की जनता की दशकों पुरानी वास्तविक और गंभीर समस्याओं को न समझा गया, न सुलझाया गया, आतंकवाद की जड़ों को कभी काट नहीं सकते। बल्कि पाकिस्तानी सेना और वहाँ की शासक शक्तियों द्वारा इन जड़ों को लगातार खाद-पानी मिलता रहा है। पहलगाम हमले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया क्या थी? उन्होंने सऊदी अरब की अपनी यात्रा को छोटा तो किया, लेकिन पहलगाम जाने के बजाय 24 अप्रैल को बिहार के मधुबनी में चुनावी रैली करने चले गए! 24 अप्रैल और 8 मई को दिल्ली में पहलगाम नरसंहार पर चर्चा के लिए बुलाई गई सर्वदलीय बैठकों में भी उन्होंने हिस्सा नहीं लिया। इसके बजाय 25 मई को दिल्ली में केवल भाजपा-एनडीए शासित मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई और संबोधित की — सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की नहीं। पहलगाम हमले के जवाब में 7 मई को भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (POK) में स्थित नौ संदिग्ध आतंकी शिविरों पर मिसाइल और हवाई हमले किए। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने भी जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी। चार दिन तक, 10 मई तक, सीमा पर संघर्ष चलता रहा जिसमें दोनों ओर जन-धन की हानि हुई। पाकिस्तान ने पूंछ, राजौरी समेत कई अन्य सेक्टरों में सीमा पार से गोलाबारी की, जिसमें हमारे कई गरीब किसान मारे गए और उनके घरों को नुकसान पहुँचा। सीपीआई(एम) ने इस सैन्य टकराव को बढ़ाने के क्या ख़तरे हैं, इसको लेकर पहले ही चेतावनी दी थी। युद्ध का परिणाम हमेशा गरीबों की जान और रोज़ी-रोटी की तबाही के रूप में सामने आता है, जबकि इससे अमीरों के खज़ाने और भरते हैं। युद्ध न तो आतंकवाद की जड़ों को काट सकता है और न ही उसका समाधान दे सकता है। इस पृष्ठभूमि में यह स्वागतयोग्य था कि 10 मई को जल्द ही युद्धविराम की घोषणा कर दी गई और शांति बहाल हुई। लेकिन इस बार एक अभूतपूर्व घटना घटी — इस युद्धविराम की पहली घोषणा भारत या पाकिस्तान ने नहीं, बल्कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने स्वयं ट्वीट कर के की। उसके बाद कम से कम सात बार ट्रम्प ने इसका श्रेय स्वयं और अमेरिका को दिया और दावा किया कि उनके ‘व्यापार व वित्त’ संबंधी दबाव के कारण ही यह युद्धविराम संभव हो सका। भारत सरकार की ओर से ट्रम्प के इन दावों पर पूरी तरह चुप्पी साध ली गई! यह चुप्पी इस बात को उजागर करती है कि पहली बार भारत ने अपनी विदेश नीति में किसी तीसरे पक्ष को हस्तक्षेप करने दिया। चार दिन चले इस सशस्त्र संघर्ष के दौरान, और उससे पहले और बाद में भी, कुख्यात ‘गोदी कॉरपोरेट मीडिया’ — प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक — दो मामलों में बेहद शर्मनाक भूमिका में रहा। पहला, अंधराष्ट्रवाद भरी झूठी खबरों का परोसना। यहाँ तक कि मीडिया ने भारत द्वारा लाहौर पर कब्ज़ा करने, इस्लामाबाद के दरवाजे पर पहुँच जाने, कराची पोर्ट पर नौसैनिक हमला करने जैसी झूठी खबरें भी चलाईं। इससे अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत की भारी फज़ीहत हुई और देश के भीतर भी जागरूक तबकों में उपहास का विषय बना। भाजपा नियंत्रित सोशल मीडिया ने मुख्यधारा मीडिया के इस झूठ के पीछे पूरी ताक़त से कदमताल किया। दूसरी और अधिक ख़तरनाक बात थी — गोदी मीडिया और भाजपा सोशल मीडिया द्वारा कश्मीरियों और मुस्लिमों के खिलाफ नफरत भरी झूठी खबरें फैलाना। यह सुनियोजित घृणा अभियान आरएसएस-भाजपा के निर्देश पर 22 अप्रैल के पहलगाम नरसंहार के दिन से ही शुरू हो गया था। इस अभियान का मकसद देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को और तेज़ करना था, जो कि आरएसएस-भाजपा की राजनीति का मूल आधार है। हमने देखा कि हरियाणा की हिमांशी नारवाल, जिनके पति नौसेना अधिकारी विनय नारवाल की पहलगाम में हनीमून के दौरान हत्या कर दी गई थी, को इसलिए सोशल मीडिया पर गालियाँ दी गईं क्योंकि उन्होंने कहा था कि इस हमले के लिए सभी कश्मीरियों या मुसलमानों को दोष नहीं देना चाहिए। केरल की आरती मेनन, जिनके पिता एन. रामचंद्रन इस हमले में मारे गए, को भी निशाना बनाया गया क्योंकि उन्होंने कहा कि इस मुश्किल समय में उन्हें कश्मीर के दो भाई — मुसाफ़र और समीर — का साथ मिला, जिन्होंने उनकी मदद की। आर्मी की वरिष्ठ अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ भी मध्यप्रदेश के भाजपा मंत्री कुँवर विजय शाह ने झूठे और अपमानजनक बयान दिए, जिस पर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। अशोक विश्वविद्यालय, सोनीपत के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को हरियाणा सरकार ने उनके एक निर्दोष फेसबुक पोस्ट के लिए गिरफ़्तार कर लिया। न्यूज़ वेबसाइट ‘द वायर’ को भी इसलिए ब्लॉक कर दिया गया क्योंकि उसने एक लेख प्रकाशित किया था जिसमें दावा किया गया था कि संघर्ष के दौरान एक राफेल विमान गिरा था। युद्धविराम के ठीक बाद 12 मई को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि “हमने आतंकवाद के बुनियादी ढांचे को बड़े पैमाने पर नष्ट कर दिया है। आतंकवादियों का सफाया कर दिया है। पाकिस्तान के भीतर बसे आतंकवादी अड्डों को तबाह कर दिया है।” यही दावे उन्होंने 2019 में बालाकोट हमले के बाद भी किए थे! इसके बाद अपने भाषण में मोदी ने तीन बिंदुओं की नई घोषणा की: पहला — यदि कहीं से भी आतंकी हमला होता है, तो उसका माकूल जवाब दिया जाएगा और आतंकवाद की जड़ों तक पहुंचकर कार्रवाई की जाएगी। दूसरा — भारत किसी भी तरह की परमाणु ब्लैकमेलिंग बर्दाश्त नहीं करेगा और ऐसे सभी अड्डों पर सटीक हमला करेगा जो परमाणु ढाल के तहत पनप रहे हैं। तीसरा — भारत आतंकवाद को समर्थन देने वाली सरकारों और आतंक के सरगनाओं में कोई फर्क नहीं करेगा। भाजपा सरकार की यह नई ‘सिद्धांत नीति’ देश की रणनीतिक और सुरक्षा नीति के लिए गंभीर मायने रखती है। लेकिन मोदी के दावे और यह नीति मुख्यतः घरेलू राजनीति में लाभ कमाने के लिए कही गई बातें ज़्यादा लगती हैं। यदि इन्हें वास्तव में लागू किया गया तो इससे भारत के विकास पथ और अंतरराष्ट्रीय छवि को गहरा नुकसान पहुँच सकता है। 10-11 जून को सीपीआई(एम) के महासचिव एम. ए. बेबी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल श्रीनगर पहुँचा, जिसमें केंद्रीय कमेटी के सदस्य और विधायक मोहम्मद यूसुफ़ तारिगामी तथा सांसद अमरा राम, के. राधाकृष्णन, सु. वेंकटेशन, जॉन ब्रिटास, बिकाश रंजन भट्टाचार्य और ए. ए. रहीम शामिल थे। प्रतिनिधिमंडल ने पहलगाम आतंकी हमले के खिलाफ उठी जनता की आवाज़ को सराहा। कश्मीर की जनता की इस आवाज़ ने सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश देशभर में फैलाने का काम किया। इस प्रतिनिधिमंडल ने पर्यटकों की जान बचाने की कोशिश में शहीद हुए सैयद आदिल हुसैन शाह के परिवार से भी भेंट कर उन्हें सांत्वना दी। आतंकवाद से प्रभावी तरीके से मुकाबला करने के लिए एक बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है, जिसमें निम्नलिखित बिंदु अनिवार्य रूप से शामिल होने चाहिए: 1. पहलगाम हमले के दोषियों को सजा दिलाने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिए। इसके लिए हमारी खुफिया और सुरक्षा व्यवस्था को पूरी तरह सुदृढ़ करना अनिवार्य है, जिसकी विफलता पहलगाम और इससे पहले पुलवामा हमलों में स्पष्ट रूप से सामने आ चुकी है। आतंकवाद का कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता, विशेषकर तब जब दोनों देशों के पास परमाणु हथियार हों। इसलिए भारत को कूटनीतिक और आर्थिक उपायों को सक्रिय करने पर ज़ोर देना होगा। पहलगाम हमले में पाकिस्तान की संलिप्तता को पुख़्ता सबूतों के ज़रिए दुनिया के सामने लाना होगा, जैसा कि 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के बाद किया गया था, ताकि अंतरराष्ट्रीय जनमत को पाकिस्तान के खिलाफ तैयार किया जा सके। 2. इस साक्ष्य के आधार पर भारत को वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) में पाकिस्तान के खिलाफ मुक़दमा मजबूत करना चाहिए ताकि उसकी आतंकवादी संगठनों को सहायता रोकने की दिशा में कदम उठाए जा सकें। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान 2012 से 2022 तक FATF की ‘ग्रे लिस्ट’ में रहा था। लेकिन मौजूदा हालात इसके विपरीत हैं। पहलगाम हमले के बावजूद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की 25 सदस्यीय कार्यकारिणी (जिसमें केवल भारत ने असहमति जताई) ने पाकिस्तान को एक अरब डॉलर का राहत पैकेज मंज़ूर कर दिया। हाल में विश्व बैंक (WB) और एशियाई विकास बैंक (ADB) से भी पाकिस्तान को भारी वित्तीय सहायता मिली है और वह संयुक्त राष्ट्र की कई आतंकवाद विरोधी कमेटियों में भी शामिल है। पहलगाम हमले की सभी दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों ने भर्त्सना की थी, लेकिन भारत की सैन्य कार्रवाई का किसी ने समर्थन नहीं किया। इससे स्पष्ट है कि भारत कितना कूटनीतिक रूप से अलग-थलग पड़ गया है। इस पृष्ठभूमि में सिंधु जल संधि (IWT) को निलंबित करने के कानूनी, कूटनीतिक और मानवीय पहलुओं का गंभीर अध्ययन आवश्यक है। 3. आतंकवाद की जड़ें काटने के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रयास केंद्र सरकार को जम्मू-कश्मीर में करने होंगे। वर्षों से जारी जनता की उपेक्षा और असंतोष को खत्म करना होगा। जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा तुरंत बहाल करना होगा। राज्य की स्वायत्तता की गारंटी देनी होगी। जनता पर जारी दमन और उत्पीड़न की नीतियाँ खत्म करनी होंगी। लोकतांत्रिक अधिकार, नागरिक स्वतंत्रता और प्रेस की आज़ादी बहाल करनी होगी। साथ ही इस संवेदनशील सीमावर्ती राज्य के सर्वांगीण विकास के लिए व्यापक कदम उठाने होंगे। यही रणनीति आतंकवाद की जड़ों पर प्रहार कर सकती है और कश्मीरी युवाओं को सीमा पार के आतंकी गिरोहों में शामिल होने से रोक सकती है। 4. इस समग्र रणनीति का एक अनिवार्य हिस्सा यह भी होना चाहिए कि देशभर में मुसलमानों के ख़िलाफ़ घृणा अभियान और हमलों की साजिशें, जिनका मक़सद सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को तेज करना है, तुरंत रोकी जाएं। 5. पहलगाम आतंकी हमले जैसे भीषण मामलों से जुड़े सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर पूरी, सूचित और लोकतांत्रिक चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की सीपीआई(एम) और विपक्ष के अन्य हिस्सों ने बार-बार मांग की है। इस मांग को देशभर की जनता को मिलकर आगे बढ़ाना चाहिए। जनता को एकजुट होकर उन सभी ताक़तों को परास्त करना होगा जो नफरत फैलाकर देश को बांटना चाहती हैं। भाजपा-आरएसएस नेतृत्व वाली सरकार पर इन पाँच बिंदुओं को स्वीकार करने और सच्चे अर्थों में आ

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